"सब आगे बढ़ गए, मैं पीछे रह गया"

 प्रस्तावना



"सब आगे बढ़ गए, मैं पीछे रह गया..." यह एक ऐसा वाक्य है जिसे न जाने कितने लोग अपने मन में दोहराते रहते हैं। जब हम अपने दोस्तों, रिश्तेदारों या साथ पढ़े लोगों को सफल होते देखते हैं—अच्छी नौकरी में, बड़ा घर, कार, शादी, घूमने की तस्वीरें—तो कहीं न कहीं मन में एक टीस उठती है। एक सवाल सिर उठाता है: "मैं क्यों नहीं कर पाया?"


इस लेख में हम इस भाव के पीछे छिपे दर्द, कारण, और इससे बाहर निकलने के रास्ते को गहराई से समझेंगे। यह सिर्फ एक लेख नहीं, बल्कि आत्मविश्लेषण और आत्मविश्वास जगाने की दिशा में एक कदम है।


1. तुलना करना इंसानी स्वभाव है, लेकिन...


तुलना इंसान की प्रकृति में है। बचपन से ही हमें दूसरों से तुलना करवाई जाती है – "देखो शर्मा जी का बेटा कितना अच्छा पढ़ता है", "वो लड़की देखो कितनी समझदार है"। ये आदत धीरे-धीरे हमारे भीतर बैठ जाती है और हम हर चीज़ को दूसरों के पैमाने पर मापने लगते हैं।


लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि हर किसी की मंज़िल, रास्ता और समय अलग होता है?


आपने कभी ट्रेनें देखी हैं? हर ट्रेन का समय अलग होता है। कोई सुबह चलती है, कोई रात को। लेकिन हर ट्रेन अपने समय पर स्टेशन पहुंचती है। आपकी भी जिंदगी की ट्रेन समय से थोड़ी देर हो सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह मंज़िल तक नहीं पहुंचेगी।




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2. सोशल मीडिया की आभासी दुनिया का भ्रम


आज के दौर में सोशल मीडिया हमारी तुलना को और तीव्र बना देता है। इंस्टाग्राम पर किसी की विदेश यात्रा, फेसबुक पर किसी की शादी, लिंक्डइन पर किसी की नई नौकरी – सब कुछ हमें ये एहसास दिलाता है कि हम "कहीं पीछे" रह गए हैं।


लेकिन क्या आपने कभी देखा है कि कोई अपने संघर्ष की तस्वीरें पोस्ट करता है? किसी ने यह लिखा हो कि "आज फेल हो गया", "डिप्रेशन से जूझ रहा हूँ", "मेरे पास नौकरी नहीं है"? नहीं ना?


सोशल मीडिया एक सजाई हुई तस्वीर है। उसमें सच्चाई का अंश होता है, लेकिन पूरी कहानी नहीं। उस आभासी दुनिया के आधार पर खुद की असल ज़िंदगी को आंकना बहुत ही गलत है।



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3. हर किसी की रफ्तार अलग होती है


आपने कभी चीता और कछुए की कहानी सुनी है? सब जानते हैं कि कछुआ धीरे चलता है, लेकिन वह रुका नहीं। अंत में वही जीतता है। जीवन भी ऐसा ही है। कोई जल्दी आगे बढ़ जाता है, कोई धीरे-धीरे।


कुछ लोग 25 की उम्र में करोड़पति बन जाते हैं, तो कुछ 45 की उम्र में अपना पहला बिजनेस शुरू करते हैं। अमिताभ बच्चन को 50 की उम्र के बाद "कौन बनेगा करोड़पति" से नई शुरुआत मिली। क्या वे पीछे रह गए थे? नहीं।


आपका समय भी आएगा। बस चलते रहिए, रुकिए मत।



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4. आत्ममूल्यांकन की जरूरत


"मैं पीछे क्यों रह गया?" – यह सवाल खुद से पूछना बुरा नहीं है, लेकिन इसका जवाब ढूंढ़ना जरूरी है। क्या आप सही दिशा में मेहनत कर रहे थे? क्या आपने खुद को बेहतर बनाने की कोशिश की? क्या आप डर या आलस्य में फंसे रहे?


कभी-कभी हम बाहर की परिस्थितियों को दोष देते हैं – किस्मत, परिवार, पैसे की कमी – लेकिन असली बदलाव तब आता है जब हम ईमानदारी से आत्ममूल्यांकन करते हैं।


जैसे कोई खोया हुआ मुसाफिर नक्शा देखकर सही दिशा में चलने लगता है, वैसे ही आत्ममूल्यांकन हमें अपनी दिशा दिखाता है।



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5. सफलता का मतलब क्या है?


क्या अच्छी नौकरी, गाड़ी, या महंगा मोबाइल ही सफलता है? या फिर एक सुकून भरी नींद, अपनों का साथ, मन की शांति ज्यादा बड़ी चीज़ है?


हर किसी की सफलता की परिभाषा अलग होनी चाहिए। किसी के लिए गाँव में रहकर खेती करना सुख है, तो किसी के लिए मेट्रो सिटी में नौकरी करना। जब तक आप अपनी परिभाषा खुद तय नहीं करेंगे, तब तक आप हमेशा दूसरों के पैमाने पर खुद को कमतर समझेंगे।



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6. जब लगता है कि सब पीछे छूट गया...


कभी-कभी मन बहुत भारी हो जाता है। लगता है कि जीवन निकल गया, कुछ नहीं कर पाए। मन में अपराधबोध, आत्मग्लानि और निराशा भर जाती है।


ऐसे समय में खुद से एक सवाल कीजिए:

"क्या अभी भी समय है?"

उत्तर होगा: "हां!"


जब तक जीवन है, तब तक संभावना है। शायद आपने देर से शुरुआत की हो, लेकिन कई बार लेट स्टार्ट भी ग्रैंड फिनिश में बदल सकता है।



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7. खुद से दोस्ती करें


जो व्यक्ति खुद से प्यार नहीं करता, खुद को स्वीकार नहीं करता, वह दूसरों से कभी प्यार या सम्मान नहीं पा सकता। सबसे पहले ज़रूरत है खुद को समझने और स्वीकार करने की।


हर सुबह खुद से कहिए:

"मैं खास हूँ, मैं अपने जीवन का नायक हूँ।"


अपने छोटे-छोटे प्रयासों की तारीफ कीजिए। जो आज आपने सीखा, जो कदम आपने उठाया – वही भविष्य की नींव है।



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8. पीछे रह जाना अंत नहीं है


पीछे रह जाना कोई अपराध नहीं है। बहुत से महान लोगों ने जीवन की शुरुआत संघर्षों से की थी। कुछ लोग बार-बार फेल हुए, लेकिन अंत में उन्होंने इतिहास रचा।


थॉमस एडिसन ने बल्ब बनाने से पहले 1000 बार असफलताएं देखीं। अब्दुल कलाम जी बचपन में अख़बार बांटते थे। क्या वे 'पीछे' थे? नहीं – वे अपनी यात्रा में थे।


आप भी अपनी यात्रा में हैं।



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9. क्या किया जा सकता है अब?


अगर आप सच में सोचते हैं कि आप पीछे रह गए हैं, तो खुद से एक वादा कीजिए:


आज से हर दिन कुछ नया सीखूंगा


समय का सही उपयोग करूंगा


तुलना नहीं, प्रेरणा लूंगा


खुद को दोष नहीं, दिशा दूंगा


अपने जीवन की जिम्मेदारी लूंगा



छोटे-छोटे लक्ष्य बनाइए, उन्हें पूरा कीजिए। हर दिन की छोटी जीत आपको बड़ी मंज़िल की ओर ले जाएगी।



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10. सफलता कभी भी मिल सकती है


सफलता किसी उम्र की मोहताज नहीं।


क FC Kohli ने TCS 50 की उम्र में शुरू की


KFC के कर्नल सैंडर्स ने 65 की उम्र में बिजनेस शुरू किया


नवाजुद्दीन सिद्दीकी को 40 की उम्र के बाद पहचान मिली



आप आज से शुरू करें। वक्त लगेगा, पर पहुंचे बिना नहीं रहेंगे।



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निष्कर्ष


"सब आगे बढ़ गए, मैं पीछे रह गया"— यह सोचना मानव स्वभाव है, लेकिन यहीं रुक जाना आपकी हार नहीं, बल्कि बदलाव की शुरुआत हो सकती है।


हर किसी की ज़िंदगी एक अलग कहानी है। आपके पास भी वो आग है जो पहाड़ों को चीर सकती है, बस उसे सुलगाना है। अपने समय को समझिए, खुद को स्वीकारिए, और लगातार बढ़ते रहिए।


याद रखिए:


"पीछे रह जाना कोई शर्म की बात नहीं है, रुक जाना है। चलना जारी रखिए, आप समय से नहीं, अपने प्रयासों से जीतेंगे।"


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